आचार्य श्रीराम शर्मा >> ब्रह्मवर्चस् साधना की ध्यान-धारणा ब्रह्मवर्चस् साधना की ध्यान-धारणाश्रीराम शर्मा आचार्य
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ब्रह्मवर्चस् की ध्यान धारणा....
उच्चस्तरीय गायत्री साधना
पंचकोश जागरण की ध्यान धारणा
१. ध्यान भूमिका में प्रवेश-
(क) सावधान-कमर सीधी, दोनों हाथ गोद में, आँखें बंद, स्थिर शरीर, शांत चित्त, ध्यान मुद्रा।
(ख) दिव्य साधना लोक-गंगा की गोद, हिमालय की छाया, सप्त ऋषियों का तप स्थान-शांतिकुंज, ब्रह्मवर्चस्, गायत्री तीर्थ, अखंड दीप, नित्य यज्ञ, नियमित जप, ब्रह्म संदोह, दिव्य-वातावरण, तीन दिव्यसत्ताओं का संरक्षण, दिव्य-साधना लोक।
(ग) प्रेरणा सद्गुरु देव की-भावानुभूति अपनी, संगम गंगायमुना का, संगम आत्मचेतना, ब्रह्मचेतना का।
(घ) भाव समाधि-वासना शांत, तुष्णा शांत, अहंता शांत, उद्विग्नता शांत।
(ङ) दिव्यदर्शन-प्रात:काल, पूर्व दिशा, स्वर्णिम सूर्योदय, स्वर्णिम सूर्य, सविता-गायत्री का प्राण-सविता।
(च) सविता-इष्ट, लक्ष्य, उपास्य। सविता-प्रकाश, ज्ञान, प्रज्ञा। सविता-अग्नि, ऊर्जा, ब्रह्म-शक्ति, सविता-ब्रह्म, सविता-वर्चस, सविता-ब्रह्मवर्चस्, सविता उपास्य, ब्रह्मवर्चस् उपास्य।
(छ) एकत्व, अद्वैत-साधक का सविता को समर्पण। समर्पण,विसर्जन, विलय, साधक-सविता एक, भक्त-भगवान एक।
२. विशिष्ट ध्यान प्रयोग
(क) पंचकोश-आत्मसत्ता के पाँच कलेवर, गायत्री के पाँच मुख, चेतना के पाँच प्राण, काय-कलेवर के पाँच तत्त्व, अंतर्जगत के पाँच देव-पंचकोश-पंचकोश जागरण।
प्रथम अन्नमय कोशन ख) केंद्र माभि चक्र, अग्नि चक्र, शक्ति भँवर, समर्थ चक्रवात।
(ग) सविता शक्ति का प्रवेश-नाभिचक्र से-अन्नमय कोश में।
(घ) अन्नमय कोश में सविता-अग्नि-अन्नमय कोश में।
(ङ) अग्नि-'ओजस्', कण-कण में ओजस् , नस-नस में ओजस्, रोम-रोम में ओजस्।।
(च) ओजस-स्फूर्ति, उत्साह, ओजस का जागरण, अग्नि चक्र का जागरण, अन्नमय कोश का जागरण।
द्वितीय प्राणमय कोश
(छ) केंद्र मूलाधार चक्र, प्राण चक्र, शक्ति भँवर, समर्थ चक्रवात।
(ज) सविता शक्ति का प्रवेश, मूलाधार चक्र से प्राणमय कोश में।
(झ) प्राणमय कोश में सविता-विद्युत, प्राण विद्युत सविता, प्राणमय कोश सवितामय, विद्युतमय, विद्युत-पिंड, विद्युत पुंज।
(ब) प्राण विद्युत-'तेजस्, कण-कण में तेजस्, नस-नस में तेजस्, रोम-रोम में तेजस्।'
(ट) तेजस्-प्रतिभा, पराक्रम, साहस। प्राण विद्युत का जागरण, मूलाधार चक्र का जागरण, प्राणमय कोश का जागरण।
तृतीय मनोमय कोश
(ठ) केंद्र-भ्रूमध्य, आज्ञा चक्र, तृतीय नेत्र, शक्ति भँवर, समर्थ चक्रवात।
(ड) सविता शक्ति का प्रवेश,आज्ञा चक्र से मनोमय कोश में ।
(ढ) मनोमय कोश में सविता ज्योति'-मनोमय कोश सवितामय, ज्योतिर्मय, ज्योति-पिंड, ज्योति-पुंज।
(ण) ज्योति-'प्रज्ञा', कण-कण में प्रज्ञा ज्योति, नस-नस में प्रज्ञा ज्योति, रोम-रोम में प्रज्ञा ज्योति।
(त) प्रज्ञा-संतुलन, विवेक, प्रज्ञा जागरण, आज्ञा चक्र का जागरण, मनोमय कोश का जागरण। चतुर्थ विज्ञानमय कोश
(थ) केंद्र हृदय चक्र, ब्रह्म चक्र, शक्ति-भंवर, समर्थ चक्रवात।
(द) सविता शक्ति का प्रवेश, हृदय चक्र से-विज्ञानमय कोश में।
(ध) विज्ञानमय कोश में सविता-'दीप्ति'-विज्ञानमय कोश सवितामय, दीप्तिमय, दीप्ति-पिंड, दीप्ति-पुंज।
(न) दीप्ति-श्रद्धा-भक्ति, दीप्ति-दिव्य दृष्टि, अतींद्रिय क्षमता।
(प) कण-कण में दीप्ति, नस-नस में दीप्ति, रोम-रोम में दीप्ति, हृदय-चक्र का जागरण, सहृदयता का जागरण, श्रद्धा-भक्ति का जागरण, विज्ञानमय कोश का जागरण।
पंचम आनंदमय कोश
(फ) केंद्र-मस्तिष्क मध्य सहस्रार चक्र, ब्रह्मरंध्र, शक्ति-भँवर, समर्थ चक्रवात।
(ब) सविता शक्ति का प्रवेश-सहस्रार से आनंदमय कोश मेंअंतर्जगत का सूर्य, सहस्रार-स्वर्णिम सूर्य सहस्रार
(भ) आनंदमय कोश में सविता 'कांति'-आनंदमय कोश सवितामय, कांतिमय, कांति-पुंज,कांति-तृप्ति, तुष्टि, शांति।
(म) सहस्रार चक्र का जागरण, आत्मज्ञान का जागरण, ब्रह्मज्ञान का जागरण, आनंदमय कोश का जागरण, पंचकोशों का जागरण पंचतत्त्वों का जागरण, पंचप्राणों का जागरण, पंचदेवों का जागरण। समापन शांति-पाठ-
(क) ॐ तमसो मा ज्योतिर्गमय, असतो मा सद्गमय, मृत्योर्माअमृतं गमय। तमसो मा, तमसो मा, तमसो मा ज्योतिर्गमय, ज्योतिर्गमय, ज्योतिर्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय।
(ख) पंचॐकार, ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ।
समाप्ति शांति
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- ब्रह्मवर्चस् साधना का उपक्रम
- पंचमुखी गायत्री की उच्चस्तरीय साधना का स्वरूप
- गायत्री और सावित्री की समन्वित साधना
- साधना की क्रम व्यवस्था
- पंचकोश जागरण की ध्यान धारणा
- कुंडलिनी जागरण की ध्यान धारणा
- ध्यान-धारणा का आधार और प्रतिफल
- दिव्य-दर्शन का उपाय-अभ्यास
- ध्यान भूमिका में प्रवेश
- पंचकोशों का स्वरूप
- (क) अन्नमय कोश
- सविता अवतरण का ध्यान
- (ख) प्राणमय कोश
- सविता अवतरण का ध्यान
- (ग) मनोमय कोश
- सविता अवतरण का ध्यान
- (घ) विज्ञानमय कोश
- सविता अवतरण का ध्यान
- (ङ) आनन्दमय कोश
- सविता अवतरण का ध्यान
- कुंडलिनी के पाँच नाम पाँच स्तर
- कुंडलिनी ध्यान-धारणा के पाँच चरण
- जागृत जीवन-ज्योति का ऊर्ध्वगमन
- चक्र श्रृंखला का वेधन जागरण
- आत्मीयता का विस्तार आत्मिक प्रगति का आधार
- अंतिम चरण-परिवर्तन
- समापन शांति पाठ